We all when Lord Ganesha and Lord Kartike playing, during at time Kartike laugh on Ganesha because He can not run so fast than Kartike. Therefore Ganesha shout on him.But Kartike can not stop laughing and he say "he is more quick than him".So Kartike beat that Who can complete the detour of the world, he will be winner. Kartike start journey of the world, but Lord Ganesha was clever.He went to his parent and start detouring around their.All of them can not understand what he done.When Kartike come to complete his journey he say "he is the winner". But Ganesha told him that he can complete the journey of the world so he is the winner. Kartike can not believe and say"You can not go outside the Kalash so how can you compete the journey??". Ganesha understanding him that the whole world are in our Parents so there is doesn't matter to travel whole world. Kartike realize his mistake and feeling sorry.
So Friends knew that story , but I have another story about that so I start my story.....
एक दोस्त हलवाई की दुकान पर मिल गया ।
मुझसे कहा- ‘आज माँ का श्राद्ध है, माँ को लड्डू बहुत पसन्द है, इसलिए लड्डू लेने आया हूँ '
मैं आश्चर्य में पड़ गया ।
अभी पाँच मिनिट पहले तो मैं उसकी माँ से सब्जी मंडी में मिला था ।
अभी पाँच मिनिट पहले तो मैं उसकी माँ से सब्जी मंडी में मिला था ।
मैं कुछ और कहता उससे पहले ही खुद उसकी माँ हाथ में झोला लिए वहाँ आ पहुँची ।
मैंने दोस्त की पीठ पर मारते हुए कहा- 'भले आदमी ये क्या मजाक है ?
माँजी तो यह रही तेरे पास !
माँजी तो यह रही तेरे पास !
दोस्त अपनी माँ के दोनों कंधों पर हाथ रखकर हँसकर बोला, 'भई, बात यूँ है कि मृत्यु के बाद गाय-कौवे की थाली में लड्डू रखने से अच्छा है कि माँ की थाली में लड्डू परोसकर उसे जीते-जी तृप्त करूँ ।
मैं मानता हूँ कि जीते जी माता-पिता को हर हाल में खुश रखना ही सच्चा श्राद्ध है ।
आगे उसने कहा, 'माँ को मिठाई,
सफेद जामुन, आम आदि पसंद है ।
मैं वह सब उन्हें खिलाता हूँ ।
सफेद जामुन, आम आदि पसंद है ।
मैं वह सब उन्हें खिलाता हूँ ।
श्रद्धालु मंदिर में जाकर अगरबत्ती जलाते हैं । मैं मंदिर नहीं जाता हूँ, पर माँ के सोने के कमरे में कछुआ छाप अगरबत्ती लगा देता हूँ ।
सुबह जब माँ गीता पढ़ने बैठती है तो माँ का चश्मा साफ कर के देता हूँ । मुझे लगता है कि ईश्वर के फोटो व मूर्ति आदि साफ करने से ज्यादा पुण्य
माँ का चश्मा साफ करके मिलता है ।
माँ का चश्मा साफ करके मिलता है ।
यह बात श्रद्धालुओं को चुभ सकती है पर बात खरी है ।
हम बुजुर्गों के मरने के बाद उनका श्राद्ध करते हैं ।
पंडितों को खीर-पुरी खिलाते हैं ।
रस्मों के चलते हम यह सब कर लेते है, पर याद रखिए कि गाय-कौए को खिलाया ऊपर पहुँचता है या नहीं, यह किसे पता ।
माता-पिता को जीते-जी ही सारे सुख देना वास्तविक श्राद्ध है ॥
हम बुजुर्गों के मरने के बाद उनका श्राद्ध करते हैं ।
पंडितों को खीर-पुरी खिलाते हैं ।
रस्मों के चलते हम यह सब कर लेते है, पर याद रखिए कि गाय-कौए को खिलाया ऊपर पहुँचता है या नहीं, यह किसे पता ।
माता-पिता को जीते-जी ही सारे सुख देना वास्तविक श्राद्ध है ॥
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